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रहीम के दोहे ,Class 9, Rahim Ke Dohe

  • Utkarsh Chowdhary
  • Jun 2, 2022
  • 10 min read

Updated: May 5, 2023


कवि परिचय

इस पाठ के कवि है रहीम। रहीम

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जन्म लाहौर (अब पाकिस्तान) में सन 1556 में हुआ। इनका पूरा नाम 'अब्दुरहाम खानखाना' था। रहीम अरबी, फारसी, संस्कृत और हिंदी के अच्छे जानकार थे। रहीम मध्ययुगीन दरबारा संस्कृति के प्रतिनिधि कवि माने जाते हैं। अकबर के दरबार में हिंदी कवियों में इनका महत्त्वपूर्ण स्थान था। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे।

रहीम के काव्य का मुख्य विषय श्रृंगार, नीति और भक्ति है। रहीम बहुत लोकप्रिय कवि थे। इनके दोहे सर्वसाधारण को आसानी से याद हो जाते हैं। इनके नीतिपरक दोहे ज्यादा प्रचलित है, जिनमें दैनिक जीवन के दृष्टांत देकर कवि ने उन्हें सहज, सरल और बोधगम्य बना दिया है। रहीम को अवधी और ब्रज दोनों भाषाओं पर समान अधिकार था। इन्होंने अपने काव्य में प्रभावपूर्ण भाषा का प्रयोग किया है।

रहीम की प्रमुख कृतियाँ हैं : रहीम सतसई, शृंगार सतसई, मदनाष्टक, रास पंचाध्यायी, रहीम रत्नावली, बरवै, भाषिक भेदवर्णन। ये सभी कृतिया ‘रहीम ग्रथावली’ में समाहित हैं।

प्रस्तुत पाठ में रहीम के नीतिपरक दोहे दिए गए हैं। ये दोहे जहाँ एक ओर पाठक को औरों के साथ कैसा बरताव करना चाहिए, इसकी शिक्षा देते हैं, वहीं मानव मात्र को करणीय और अकरणीय आचरण की भी नसीहत देते हैं। इन्हें एक बार पढ़ लेने के बाद भूल पाना संभव नहीं है और उन स्थितियों का सामना होते ही इनका याद आना लाजिमी है, जिनका इनमें चित्रण है।





1.रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।

टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय॥


शब्दार्थ:-

चटकाय = चटकना, टूटना ।

परि = पड़ना, पड़ जाना ।

अर्थ: प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से रहीम जी कहते हैं कि प्रेम रूपी धागे को कभी भी झटके से तोड़ना नहीं चाहिए क्योंकि जब वह एक बार टूट जाता है , तो उसे दोबारा जोड़ने पर उसमें गांठ ही पड़ती जाती है। अर्थात प्रेम का बंधन उस नाजुक धागे के समान है जिसमें जरा सा भी तनाव (आपसी टकराव) पड़ने पर वह टूट जाता है और एक बार टूट जाने पर दोबारा उसे जोड़ने पर उसमें गांठ ही पड़ती है। जिससे कि वह रिश्ता फिर कभी पहले जैसा नहीं रहता।


2.रहिमन निज मन की बिथा, मन ही राखो गोय।

सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहै कोय॥

शब्दार्थ:-

निज = मेरा, अपना।

बिथा = कष्ट, दर्द।

बाँटि = बांटना, वितरण करना।

सुनि = सुन्ना, सुनकर।

अठिलैहैं = मज़ाक उड़ाना, जिद्दी।


अर्थ: प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से रहीम जी कहते हैं कि अपने मन की बिथा या दर्द को अपने मन तक ही सीमित रखना चाहिए। किसी दूसरे को नहीं बताना चाहिए। क्योंकि जब किसी दूसरे को उसके बारे में पता चलता है। तो वे उस दुख को बांटने के बजाय उसका मजाक हीं उड़ाते हैं।



3. एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।

रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अघाय॥

शब्दार्थ:

एकै = एक।

साधे = साथ।

मूलहिं = जड़ में।

सींचिबो = सिंचाई करना।

अघाय = तृप्त।

अर्थ: प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से रहीम जी कहते हैं कि एक बार में कोई एक ही कार्य करना चाहिए। एक से अधिक कार्यों को एक बार में करने से कोई लक्ष्य प्राप्त नहीं होता अर्थात उन में से कोई भी कार्य सिद्ध नहीं होगा। इसीलिए बुद्धिमान मनुष्य को एक बार में एक ही कार्य को करना चाहिए। बाकी काम भी उसी तरह से एक एक कर करने से सिद्ध हो जाएंगे। जैसे जड़ में पानी डालने से ही किसी पौधे में फूल और फल आते हैं ना कि प्रत्येक फूल और फल में पानी देने से।


4. चित्रकूट में रमि रहे, रहिमन अवध-नरेस।

जा पर बिपदा पड़त है, सो आवत यह देस॥

शब्दार्थ:

अवध = रहने योग्य न होना।

बिपदा = विपत्ति , मुसीबत।

अर्थ: प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से रहीम जी कहते हैं कि जब राम जी को वनवास मिला था तो वह चित्रकूट में रहने गए थे जो कि एक घनघोर वन में बहुत ही बीहड़ इलाका था। और श्री राम जी जैसे राजा के रहने योग्य नहीं था। लेकिन मजबूरी में उन्हें उस स्थान पर रहना पड़ा जहां पर अनेक बाधाएं थीं । इस श्लोक में रहीम जी यह कहना चाहते हैं। कि मनुष्य को हर समय विपदाओं के लिए तैयार रहना चाहिए क्योंकि भविष्य में हमारा सामना किसी भी विपदा से हो सकता है।

5. दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।

ज्यों रहीम नट कुंडली, सिमिटि कूदि चढ़ि जाहिं॥

शब्दार्थ:

अरथ = अर्थ, मतलब।

आखर = शब्द।

थोरे = कम, थोड़ा।

सिमिटि = सिकुड़ कर , सिमिट कर।

अर्थ: प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से रहीम जी कहते हैं कि दोहों को उनके आकार से नहीं आंकना चाहिए क्योंकि उनका आकार तो छोटा हो सकता है परंतु उनके अर्थ बड़े ही गहरे और बहुत कुछ कहने में समर्थ होते हैं। जैसे कोई नट अपने बड़े शरीर को कुंडली मार कर सिमटा लेता है और छोटा दिखाई देता है, जिससे कि उसके सही आकार का अंदाजा नहीं लग पाता। वैसे ही किसी को उसके आकार से नहीं आंकना चाहिए क्योंकि आकार से किसी की भी प्रतिभा का सही अंदाजा नहीं लगता है।

6. धनि रहीम जल पंक को लघु जिय पियत अघाय।

उदधि बड़ाई कौन है, जगत पिआसो जाय॥

शब्दार्थ:

धनि = धन्य

पंक = कीचड़

लघु = छोटा

अघाय = जिसकी इच्छा या वासना पूरी हो चुकी हो

उदधि = सागर

पिआसो = प्यासा

अर्थ: प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से रहीम जी कहते हैं कि ,एक कीचड़ का पानी जिसे हम गंदा समझते हैं उसमें पानी की मात्रा कम होने पर भी अनगिनत सूक्ष्मजीव अपनी प्यास बुझाते हैं। इसलिए यह कीचड़ का पानी धन्य है। लेकिन इसके विपरीत वह विशाल सागर का जल जिसकी मात्रा बहुत अधिक है। फिर भी वह जल खारा होने के कारण खराब (व्यर्थ) है क्योंकि उस जल से किसी की कोई सहायता नहीं होती और ना हीं किसी जीव की प्यास बुझ पाती है क्योंकि विशालता या बड़ा होने के बाद भी उसका जल पीने योग्य नहीं। अतः कहने का मतलब यह है कि बड़ा होने से कोई लाभ नहीं अगर आप किसी की मदद नहीं कर सकते।

7. नाद रीझि तन देत मृग, नर धन देत समेत।

ते रहीम पशु से अधिक, रीझेहु कछू न देत॥

शब्दार्थ: नाद = आवाज़, संगीत की ध्वनि

रीझि = प्रसन्नता, खुश होकर

मृग = हिरण

अर्थ: प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से रहीम जी कहते हैं कि जिस प्रकार हिरण किसी के संगीत से खुश होकर उसके प्रति अपना शरीर तक न्योछावर कर देता है। ठीक इसी प्रकार कुछ लोग दूसरे के प्रेम में इतना रम जाते हैं कि अपना सब कुछ न्योछावर कर देते हैं। लेकिन दूसरी ओर कुछ ऐसे लोग भी हैं जो पशुओं से भी बदतर होते हैं जो दूसरों से तो बहुत कुछ ले लेते हैं लेकिन बदले में कुछ भी देने को तैयार नहीं होते हैं। यहां कहने का तात्पर्य यह है कि अगर आपको कोई कुछ दे रहा है तो आप का भी फर्ज बनता है कि आप उसे बदले में कुछ ना कुछ दें।


8. बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।

रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय॥

शब्दार्थ:

बिगरी = बिगड़ी।

फटे दूध = फटा हुआ दूध।

मथे = मरना।

अर्थ: प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से रहीम जी कहते हैं कि जब एक बार कोई बात बिगड़ जाती है तो लाख कोशिश करने के बावजूद भी हालात या रिश्तों को पहले जैसी स्थिति में लाना मुश्किल होता है। उन बातों की कड़वाहट से रिश्तो में पहले जैसी मिठास नहीं रहती है। ठीक वैसे ही जैसे जब दूध फट जाए तो उसे मथने से मक्खन नहीं निकलता। अर्थात हमें कोई भी बात बोलने से पहले सौ बार सोचना चाहिए क्योंकि अगर कोई बात बिगड़ जाए तो उसे सुलझाना बहुत कठिन हो जाता है।

9. रहिमन देखि बड़ेन को, लघु न दीजिये डारि।

जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि॥

शब्दार्थ:

बड़ेन = बड़ा , विशाल।

लघु = छोटा।

आवे = आना।

तरवारि = तलवार।

प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से रहीम जी कहते हैं कि हमें किसी को उसके आकार से नहीं आंकना चाहिए और छोटे आकार के कारण किसी की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए। क्योंकि जहा छोटी चीज की जरूरत होती है वहां बड़ी चीज किसी काम नहीं आती। जैसे जहां सोने की जरूरत होती है वहां तलवार का कोई काम नहीं होता। इसलिए किसी भी चीज को कम नहीं आंकना चाहिए क्योंकि हर चीज का अपनी-अपनी जगह अपना अलग महत्व होता है।

10. रहिमन निज संपति बिन, कौ न बिपति सहाय।

बिनु पानी ज्यों जलज को, नहिं रवि सके बचाय॥

शब्दार्थ:

निज = अपना।

संपत्ति = धन दौलत , पैसा।

बिपति = विपत्ति , मुसीबत।

सहाय = सहायता , मदद।

जलज = कमल।

रवि = सूरज।

अर्थ: प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से रहीम जी कहते हैं कि जिसके पास अपना धन नहीं है। उसकी विपत्ति में कोई भी सहायता नहीं करता। जैसे यदि तालाब सूख जाता है तो उसे सूर्य जैसे प्रतापी भी नहीं बचा पाता। अर्थात मेहनत से कमाया हुआ धन ही मुसीबत से निकाल सकता है क्योंकि मुसीबत के समय सभी दूरी बनाए रखते हैं और कोई भी साथ नहीं देता है।

11. रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।

पानी गए न ऊबरे, मोती, मानुष, चून॥

शब्दार्थ:

बिनु = बिना , बगैर।

मानुष = मनुष्य , इंसान।

चून = चूना।

अर्थ: प्रस्तुत पंक्तियों के माध्यम से रहीम जी कहते हैं कि पानी को तीन अर्थों का प्रयोग किया गया है। पहला अर्थ मनुष्य के लिए है इसका मतलब है विनम्रता। दूसरा अर्थ चमक के लिए है जिसके बिना मोती का कोई मूल्य नहीं। तीसरा अर्थ चूने से जोड़कर दर्शाया गया है। रहीम जी का कहना है की जिस:

1. मनुष्य में विनम्रता नहीं है।

2. जिस मोती में चमक नहीं।

3. जो चूना पानी में नरम नहीं पड़ता हों।

उनका कोई महत्व नहीं रह जाता है।


पाठ्यपुस्तक के प्रश्न-अभ्यास


प्रश्न 1. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए-


(क) प्रेम का धागा टूटने पर पहले की भाँति क्यों नहीं हो पाता?

उत्तर- प्रेम किसी अन्य के साथ लगाव, आकर्षण और विश्वास के कारण होता है। यदि एक बार यह लगाव और विश्वास टूट जाता है तो फिर उसमें पहले जैसा भाव नहीं रहता। मन में एक दरार आ हीं जाती है। ठीक वैसे हीं जैसे कि कोई धागा टूटने पर जुड़कर अपनी पहले जैसी अवस्था में नहीं आ पाता और यदि उसे जोड़ा जाए तो उस धागे पर गाँठ पड़ ही जाती है।


(ख) हमें अपना दुख दूसरों पर क्यों नहीं प्रकट करना चाहिए? अपने मन की व्यथा दूसरों से कहने पर उनका व्यवहार कैसा हो जाता है?

उत्तर) हमें अपना दु:ख दूसरों पर प्रकट नहीं करना चाहिए इसका कारण यह है कि लोग दूसरों के दु:ख की बातों को सुनकर प्रसन्न हीं होते हैं। वे उस दुख को बाँटने के लिए तैयार नहीं होते। उनका व्यवहार मित्रों जैसा नहीं रहता अपितु अजनबी जैसा हो जाता है।


(ग) रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल को धन्य क्यों कहा है?

उत्तर ) रहीम ने सागर की अपेक्षा पंक जल अर्थात कीचड़ के जल को धन्य कहा है क्योंकि उसे पीकर कीट-पतंगे अपनी प्यास बुझा लेते हैं। जबकि सागर का आकार तो विशाल होता है परन्तु उसका जल खारा होता है। जिससे वो किसी की भी प्यास नहीं बुझा पाता इसलिए सागर की तुलना में पंक का जल धन्य होता है।


(घ) एक को साधने से सब कैसे सध जाता है?

उत्तर ) एक परमात्मा को साधने से अन्य सारे काम अपने-आप सध जाते हैं। कारण यह है कि परमात्मा ही सबको मूल है। जैसे मूल अर्थात् जड़ को सींचने से फल-फूल अपने-आप उग आते हैं, उसी प्रकार परमात्मा को साधने से अन्य सब कार्य कुशलतापूर्वक संपन्न हो जाते हैं।


(ङ) जलहीन कमल की रक्षा सूर्य भी क्यों नहीं कर पाता?

(उत्तर) कमल की मूल संपत्ति है-जल। उसी के होने से कमल जीवित रहता है। यदि वह न रहे तो सूर्य भी कमल को जीवन नहीं दे सकता। सूर्य बाहरी शक्ति है। जल भीतरी शक्ति है। इसी भीतरी शक्ति से ही जीवन चलता है।


(च) अवध नरेश को चित्रकूट क्यों जाना पड़ा?

(उत्तर) अवध नरेश अर्थात् श्रीराम को चित्रकूट जाना पड़ा क्योंकि उन्हें माता-पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए चौदह वर्षों तक वनवास भोगना था। उसी वनवास के दौरान उन्हें चित्रकूट जैसे रमणीय वन में रुकने का अवसर मिला।


(छ) “नट’ किस कला में सिद्ध होने के कारण ऊपर चढ़ जाता है?

(उत्तर) नट स्वयं को समेटकर, सिकोड़कर तथा संतुलित करने के कारण कुंडली में से निकल जाता है और तार पर चढ़ जाता है।


(ज) “मोती, मानुष, चून’ के संदर्भ में पानी के महत्व को स्पष्ट कीजिए।

(उत्तर) ‘मोती’ के संदर्भ में ‘पानी’ का अर्थ है-चमक। रहीम का कहना है कि चमक के बिना मोती का कोई मूल्य नहीं होता।‘मानुष’ के संदर्भ में ‘पानी’ का अर्थ है-आत्म-सम्मान। रहीम का कथन है कि आत्म-सम्मान केबिना मनुष्य का कोई मूल्य नहीं होता।‘चून’ के संदर्भ में पानी का महत्त्व सर्वोपरि है। बिना पानी के आटे की रोटी नहीं बनाई जा सकती। इसलिए वहाँ पानी का होना अनिवार्य है।


प्रश्न 2.

निम्नलिखित का भाव स्पष्ट कीजिए-

(क) टूटे से फिर ना मिले, मिले गाँठ परि जाय।

उत्तर)- भाव यह है कि प्रेम का बंधन अत्यंत नाजुक होता है। इसमें कटुता आने पर मन की मलिनता कहीं न कहीं बनी ही रह जाती है। प्रेम का यह बंधन टूटने पर सरलता से नहीं जुड़ता है। यदि जुड़ता भी है तो इसमें गाँठ पड़ जाती है।

(ख) सुनि अठिलैहैं लोग सब, बाँटि न लैहैं कोय।

उत्तर) भाव यह है कि जब हम सहानुभूति और मुद्रदै पाने की आशा से अपना दुख दूसरों को सुनाते हैं तो लोग सहानुभूति दर्शाने और मदद करने की अपेक्षा हमारा मजाक उड़ाना शुरू कर देते हैं। अतः दूसरों को अपना दुख बताने से बचना चाहिए।

(ग) रहिमन मूलहिं सचिबो, फूलै फलै अघाय।

( उत्तर) भाव यह है कि किसी पेड़ से फल-फूल पाने के लिए उसके तने, पत्तियों और शाखाओं को पानी देने के बजाय उसकी जड़ों को पानी देने से ही वह खूब हरा-भरा होता है और फलता-फूलता है। इसी तरह एक समय में एक ही काम करने पर उसमें सफलता मिलती है।


(घ) दीरघ दोहा अरथ के, आखर थोरे आहिं।

उत्तर) भाव यह है कि किसी वस्तु का आकार ज्यादा महत्त्वपूर्ण नहीं होता है, महत्त्व होता है उसमें निहित अर्थ का। दोहे का महत्त्व इसलिए है कि वह कम शब्दों में गूढ़ अर्थ समेटे रहता है।

(ङ) नाद :रीझि तन देत मृग, नर धन हेत समेत

उत्तर) भाव यह है कि प्रसन्न होने पर मनुष्य ही नहीं, पशु भी अपना तने तक दे देते हैं परंतु कुछ मनुष्य पशुओं से भी बढ़कर पशु होते हैं। वे धन के लिए अपना सब कुछ दे देते हैं।

(च) जहाँ काम आवे सुई, कहा करे तरवारि।

उत्तर)भाव यह है कि वस्तु की महत्ता उसके आकार के कारण नहीं, बल्कि उसकी उपयोगिता के कारण होती है। छोटी से छोटी वस्तु का भी अपना महत्त्व होता है, क्योंकि जो काम सुई कर सकती है उसे तलवार नहीं कर सकती है।

(छ) पानी गए न ऊबरै, मोती, मानुष, चून।

उत्तर) भाव यह है कि मनुष्य को सदैव पानी बचाकर रखना चाहिए क्योंकि पानी (चमक) जाने पर मोती साधारण पत्थर, सी रह जाती है, पानी (इज्जत) जाने पर मनुष्य स्वयं को अपमानित-सा महसूस करता है और पानी (जल) न रहने पर आटे से रोटियाँ नहीं बनाई जा सकती हैं।


प्रश्न 3.

निम्नलिखित भाव को पाठ में किन पंक्तियों द्वारा अभिव्यक्त किया गया है-


1.जिस पर विपदा पड़ती है वही इस देश में आता है।

उत्तर) जा पर विपदा पड़त है, सो आवत यह देस।


2. कोई लाख कोशिश करे पर बिगड़ी बात फिर बन नहीं सकती।

उत्तर)बिगरी बात बनै नहीं, लाख करौ किन कोय।


3.पानी के बिना सब सूना है अतः पानी अवश्य रखना चाहिए।

उत्तर)रहिमन पानी राखिए, बिनु पानी सब सून।


प्रश्न 4.

उदाहरण के आधार पर पाठ में आए निम्नलिखित शब्दों के प्रचलित रूप लिखिए-

उदाहरण : कोय – कोई, जे – जो

  1. ज्यों – जैसे

  2. कुछ – कछु

  3. नहिं – नहीं

  4. कोय – कोई

  5. धनि – धनी

  6. आखर – अक्षर

  7. जिय – जी

  8. थोरे – थोडे

  9. होय – होना

  10. माखन – मक्खन

  11. तरवारि – तलवार

  12. सींचिबो – सिंचाई करना

  13. मूलहिं – मूल

  14. पिअत – पीना

  15. पियासो – प्यासा

  16. बिगरी – बिगड़ी

  17. आवे – आए

  18. सहाय – सहायक

  19. ऊबरै – उबरना

  20. बिनु – बिना

  21. बिथा – व्यथा

  22. अठिलैहैं – अठखेलियाँ

  23. परिजाय – पड़ जाए



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Guest
Jul 21
Rated 5 out of 5 stars.

Only source which conveys the actual meaning of these couplets by Abdur Rahim khan khana. It is the most accurate interpretation. I am so glad I found this in time,I am so grateful. Thank you so much.

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Guest
Jul 20
Rated 5 out of 5 stars.

Very useful

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Guest
Jul 20
Rated 5 out of 5 stars.

It was very helpful

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Guest
Jun 30
Rated 4 out of 5 stars.

It helped me.

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Guest
May 02
Rated 1 out of 5 stars.

Meaning of dohe are not appropriate

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